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श्री अन्नपूर्णा चालीसा
॥ दोहा ॥ विश्वेश्वर-पदपदम की,रज-निज शीश-लगाय। अन्नपूर्णे! तव सुयश,बरनौं कवि-मतिलाय॥ ॥ चौपाई ॥ नित्य आनन्द करिणी माता।वर-अरु अभय भाव प्रख्याता॥ जय! सौंदर्य सिन्धु जग-जननी।अखिल पाप हर भव-भय हरनी॥ श्वेत बदन…