रामायण और रामचरितमानस – प्रिय पाठकों, महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना लगभग 9 लाख साल पहले वैदिक संस्कृत में की थी और वाल्मीकि रामायण को ही मूल रामायण कहा जाता है क्योंकि वाल्मीकि जी भगवान श्री राम के समय में मौजूद थे और रामायण के ही आधार पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लगभग 500 साल पहले रामचरितमानस की रचना की। आज रामायण श्रृंखला में हम वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित में अंतर क्या हैं, इसको विस्तार से जानेंगे।
पहला अंतर
भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह सीता स्वयंवर के बाद हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरित में यही लिखा है, लेकिन क्या आप जानते हैं, महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में कहीं स्वयंवर की चर्चा नहीं की हैं। रामायण में कहीं पर भी धनुष यज्ञ का भी जिक्र नहीं किया गया है। दशरथ पुत्र श्री राम और सीता का पुष्प वाटिका में पहली बार मिलना भी श्रीरामचरितमानस में लिखा गया है, जबकि वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख कहीं भी नहीं आता है।
दूसरा अंतर
गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस में राम के छोटे भाई लक्ष्मण को क्रोधी बताया गया हैं, वो बात-बात पर गुस्से में उबल जाते हैं। जबकि वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण को एक दम शांत और सौम्य बताया गया है। पूरी रामायण में लक्ष्मण जी को सिर्फ तीन बार ही गुस्सा आता है। पहली बार लक्ष्मण जी को तब क्रोध आता है, जब वो श्री राम के वनवास का समाचार सुनते हैं, दूसरी बार भरत मिलाप के समय और तीसरी बार जब किष्किंधा में सुग्रीम को वो अपनी प्रतिज्ञा याद दिलाते हैं। तुलसी रामायण के अनुसार लंका जाने के लिए समुद्र ने जब श्रीराम को रास्ता नहीं दिया, तो लक्ष्मण क्रोध में आ जाते हैं। उन्होंने श्री राम से समुद्र पर अग्निबाण चलाने की बात कही गयी है, वहीं दूसरी तरफ रामायण में वाल्मीकि जी ने लिखा है, कि श्री राम को समुद्र पर क्रोध आता है, जबकि लक्ष्मण जी उनको शांत करने का प्रयास करते हैं।
तीसरा अंतर
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लक्ष्मण रेखा का जिक्र किया है। वहीं वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण रेखा का कोई उल्लेख या फिर कोई प्रसंग नहीं मिलता है।
चौथा अंतर
लंका पति रावण की सभा में अंगद ने पांव जमा दिए, तो एक प्रंसग में श्री राम के दरबार में पवन सुत हनुमान ने सीना चीर कर अपने हृदय में बसी हुई श्री राम और माता सीता की छवि को सबके सामने दिखा दिया। दोस्तों आप को यह दोनों पसंद भी वाल्मीकि रामायण में पढ़ने को नहीं मिलते हैं। हम दोनों ही प्रंसगों को तुलसी रामायण से जानते हैं।
पांचवा अंतर
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में माता सीता का हरण और लंका में मिले उन्हें कष्ट को वास्तविक बताया हैं, उन्होंने इस में कोई माया का उल्लेख कहीं भी नहीं किया हैं। वहीं दूसरी तरफ तुलसीदास जी कहते हैं, की रावण ने जिस सीता का हरण किया था, वो असली सीता नहीं थी। वो सिर्फ माता सीता की परछाई और भगवान राम की केवल एक माया थी और सीता हरण के समय भगवान राम ने माता सीता को अग्नि देव के हवाले कर दिया था। अग्नि परीक्षा केवल सीता मां को अग्नि देव से वापस प्राप्त करने के लिए आयोजित की गई थी। इस प्रसंग में वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों का आख्यान एकदम अलग-अलग दिखाई देता हैं।
छठवां अंतर
महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार राम-रावण युद्ध दो बार हुआ था। युद्ध के पहले दिन लंकापति रावण लड़ने आया था और अंतिम दिन वो फिर से वापस लड़ने आया था, जहां श्रीराम के बाणों से रावण मारा गया। वहीं गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस में श्रीराम-रावण युद्ध सिर्फ एक बार हुआ और उसी युद्ध में भगवान ने रावण को मार गिराया था।
सातवां अंतर
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम भक्त हनुमान को बंदर लिखा हैं, जबकी महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार हनुमान जी बंदर नहीं बल्कि वानर थे, यानी वो नर जो वन में रहता हैं। वहीं गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में पवन पुत्र हनुमान को भगवान शिव का एक अवतार बताया है। उन्होंने लिखा हैं, कि शंकर सुमन केसरी नंदन, जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कहीं पर भी उल्लेख नहीं किया गया है।
आठवां अंतर
भगवान श्री राम के वनवास के समय महर्षि वाल्मीकि ने लिखा हैं, कि महाराज दशरथ कैकई से कहते हैं, वनवास तो केवल मेरे पुत्र राम को हुआ हैं, सीता का नहीं, अगर राम वन जा रहे हैं, तो सीता को राज सिंहासन पर बिठाया जाए। लेकिन श्री रामचरितमानस में ऐसा कोई प्रसंग तुलसीदास जी ने नहीं लिखा है।
नवां अंतर
दशानन रावण की नाभि में अमृत था, जी हां दोस्तों ऐसा रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है, वहीं दूसरी तरफ महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में रावण की नाभि में अमृत होने का कोई भी प्रंसग हमको पढ़ने को नहीं मिलता है।
दसवां अंतर
गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस में एक उल्लेख में पढ़ने को मिलता है, जब माता सीता सोने का हिरण देखती है और श्री राम से उस हिरण के चर्म को मांगती है, जिसे वो अपनी कुटिया में सजाकर रखना चाहती है, लेकिन वाल्मीकि रामायण में माता सीता सोने का हिरण किसी और उद्देश्य से मांगती हैं, वो सोने के हिरण को मारना नहीं, बल्कि वापस अयोध्या लेकर जाना चाहती थी। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस में केवट का सुंदर और सहज किरदार पढ़ने को मिलता हैं, लेकिन वाल्मीकि रामायण में केवट का कोई भी प्रसंग या जिक्र नहीं किया गया है। तो दोस्तों आज के लेख में हमने रामायण और रामचरित की ऐसी अनकही और अनसुनी बातों को जाना हैं। जो कभी रामायण में तो कभी रामचरित में पढ़ने को मिलती है। ऐसे ही अधिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें।
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