क्या अपने कभी सोचा कि विवाह के बंधन में बंधने से पूर्व क्यों मिलाये जाते हैं 36 गुण?
नमस्कार दोस्तों, इसके पहले वाले लेख में हमने जाना था कि शादी से पहले कुंडली मिलाना क्यों जरूरी होता है। इस लेख में हम जानेंगे वर और वधु के 36 गुण मिलने का क्या तात्पर्य होता है? एक कुंडली में आखिर कितने गुण होते हैं? सफल शादी के लिए वर और वधु के कितने गुण मिलने चाहिए?
एक सुखी वैवाहिक जीवन तभी सफल माना जाता है, जब सब कुछ सुखी और शांति से चल रहा हो इसलिए जब भी शादी की बात होती है, तो ऐसे में सब कुछ बहुत ही सोच समझ कर ध्यान में रखते हुए किया जाता है। विवाह में कहीं कोई गलती न हो जाए, कहीं वर और वधु की कुंडली में कोई दोष तो नहीं, सब कुछ जानने के लिए कुंडली मिलान किया जाता है।
कितने गुणों का मिलना जरूरी ?
चलिए आपको बताते हैं, विवाह के लिए वर और वधु के कितने गुणों का मिलना जरूरी है।
अट्ठारह से कम गुण:- अगर वर और वधु के 18 से कम गुण मिल रहे हैं, तो ऐसी शादी करना उचित नहीं होता है। इस शादी को न करने में ही वर और वधु की भलाई होती है। इस तरह के विवाह के सफल होने की संभावना बहुत कम होती है।
18 से 25 गुण – लड़का और लड़की के 18 से 25 के बीच गुण मिल रहे हो, तो यह शादी के लिए अच्छा मिलान माना गया है। हमारे शास्त्रों में ऐसे विवाह को सफल माना गया है।
25 से 32 गुण:- अगर वर और वधु के 25 से 32 गुण मिल रहे हैं, तो यह शादी भविष्य में बहुत अच्छी साबित होगी। इतना ही नहीं 25 में से 32 गुम मिलना विवाह के लिए सबसे ज्यादा उत्तम माना जाता है।
32 से 36 गुण :- लड़का और लड़की के 32 में से 36 गुण मिल रहे हैं, तो आपको जल्दी से शादी कर लेनी चाहिए। क्योंकि इतने ज्यादा गुण मिलना बहुत अधिक शुभ माना जाता है और बहुत कम लोगों में इतने अधिक गुणों का मिलान होता है।
क्या होता है गुण मिलान ? – 36 गुण
एक कुंडली में 36 गुण होते हैं, जिनको 8 श्रेणियों में बांटा गया है। पहला वर्ण, दूसरा- वश्य, तीसरा तारा बल, चौथा योनि, पांचवा ग्रह मैत्री, छठा, गण, सातवां भकूत और आठवां है नाड़ी।
- वर्ण :- यह चार श्रेणियों पर आधारित है, अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इसमें जाति का मिलान किया जाता है। वर का वर्ण कन्या के वर्ण से उच्य या समान होना चाहिए। यह दोनों के बीच मध्य सामंजस्य को भी दिखाता है। इसके लिए एक अंक को निर्धारित किया गया है।
- वश्य :- यह व्यक्ति की प्रकृति और विशेषताओं से संबंधित है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वैवाहिक जीवन में कौन हावी रहेगा। इसके लिए 2 अंक निर्धारित किए गए है।
- तारा :- यह व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर कुंडली से मेल खाता है। यह नक्षत्र अनुकूलता के आधार पर निर्भर करता है तारा बल वर और वधु के भाग्य के लिए निर्धारित किया गया है।
- योनि : :- यह युगल के अंतरंग स्तर, प्रेम, शारीरिक अनुकूलता और यौन अनुकूलता को मापता है। इसके लिए 4 अंक निर्धारित किए गए हैं।
- ग्रह मैत्री :- यह जोड़ों के बीच मानसिक अनुकूलता, बौद्धिक अनुकूलता और प्राकृतिक मित्रता से संबंध रखता है। यह लड़का और लड़की के चंद्र राशि की अनुकूलता को भी ध्यान में रखता है। इसके लिए 5 अंक को निर्धारित किया गया है।
- गण:- वर और वधु दोनों के मानवीय व्यवहार, विशेषताओं और स्वभाव से संबंधित है। इसके लिए 6 अंक निर्धारित किए गए हैं।
- भक्त :- यह उस प्रेम से संबंधित है, जो दो लोग साझा करते हैं। धन और भावनात्मक अनुकूलता भकूत पर ही निर्भर करता है। दूल्हे की जन्म कुंडली में चंद्रमा की सटीक स्थिति को ध्यान में रखता है। इसके लिए 7 अंक निर्धारित किए गए हैं।
- नाड़ी :- यह वर और वधु के स्वास्थ्य और संतान से संबंधित है और इसके लिए 8 अंकों को निर्धारित किया गया है। इस गुण का अंक सबसे अधिक है, जिसके कारण इस को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इसका सीधा संबंध संतान उत्पत्ति से है। यदि दोनों की नाड़ी एक है, तो संतान में दोष पाया जा सकता है।
वर और वधु के गुण मिलान के साथ कुंडली में बाकी ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को भी ध्यान में रखकर ही शादी का फैसला लेना चाहिए। कुंडली में विवाह स्थान के स्वामी की क्या स्थिति है, इस पर भी बहुत अधिक बल जातक को देना चाहिए। आपको बता दें कुंडली में सातवां घर विवाह स्थान का होता है तो दोस्तों आज के लेख में हमने जाना कुंडली मिलान से यह निर्धारित किया जाता है कि प्रत्येक दृष्टिकोण से वर और वधु एक दूसरे के प्रति भाग्यशाली हों और दोनों का जीवन ठीक ढंग से व्यतीत हो।
Source – ShriMandir