विक्रम संवत – प्रिय पाठकों, हिंदू पंचाग में हर चैत्र माह में नववर्ष की शुरुआत होती है। चैत्र महीने के पहले दिन से यानी सूर्य की पहली किरण से हिंदू नव वर्ष शुरु हो जाता है। ब्रह्मपुराण की मान्यता के मुताबिक इसी दिन से सृष्टि का निर्माण शुरू हुआ था। शास्त्रों के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की शुरुआत चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के पहले दिन से ही की थी। जिसके कारण हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन को नया साल कहा जाता है और उन्होंने सृष्टि की खोज 1,97,29,40,125 साल पहले की थी। इस लेख में विस्तार से जानेंगे कि हिंदू कैलेंडर में नया वर्ष एक जनवरी को आखिर क्यों नहीं मनाया जाता हैं? विक्रम संवत पंचाग में हिंदू नव वर्ष के पीछे का साइंस आखिर क्या है? विक्रम संवत पंचाग की शुरुआत कब और कैसे हुई थी?
विक्रम संवत का इतिहास
भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनिया के सभी कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का अनुसरण करते रहते हैं। इस पंचाग और काल गणना का आधार विक्रम संवत है। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश के प्राचीन अवंतिका नगरी से हुई थी। सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में यह कैलेंडर जारी हुआ। जिसके कारण इसका नाम विक्रम संवत हुआ था। विक्रमादित्य ने इसी दिन विदेशी आक्रमणकारी शकों को युद्ध में हराया था। उनकी इस जीत को याद करते हुए चैत्र महीने की एक तारीख को विक्रम संवत के तौर पर मनाया जाता हैं। संवत, काल या समय को मापने का वो पैमाना है, जिसे भारतीय कैलेंडर के नाम से भी जानते हैं।
भारत देश में विक्रम संवत के अनुसार नया साल बनाने की परंपरा है। जिस विक्रम संवत को हम मानते हैं, उसका आरंभ भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने किया था। जी हां 57-58 ईसा पूर्व में मध्य प्रदेश के प्राचीन शहर उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने भारत को शकों के अत्याचार से मुक्त करवाया था। इसी विजय की खुशी और याद में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को विक्रम संवत की शुरुआत हुई थी। इस संवत से इसकी प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विद्या भरण ग्रंथ से होती है।
इसके अनुसार विक्रमादित्य ने तीस हजार चौवालीस सौ कली अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया गया था। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के समय में सबसे बड़े खगोलशास्त्री वराहमिहिर की सहायता से विक्रम संवत को बनाना गया था। विक्रम संवत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे चलता है। यानी कि वर्तमान साल 2023 में 57 का जोड़ करने से इस हिसाब से विक्रम संवत पंचांग में 2080 की शुरुआत होती है। विक्रम संवत को गणितीय नजरिए से एकदम सटीक और शक्ति कालगणना माना जाता है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार उत्तर से दक्षिण भूमध्य रेखा थी। जो श्रीलंका से उज्जैन और उज्जैन से उत्तर मेरू तक जाती थी।
जिसके कारण मध्य ईशान हमेशा से उज्जैन ही रहा है और इस की वजह से महाराज विक्रमादित्य ने उस गणना को सार्थक करने के लिए अपना संवत चलाया था। इसीलिए यहां से ही विक्रम संवत पंचाग की गणना होती थी। भारतीय शासकीय इतिहास की दृष्टि से भारत में राष्ट्रीय संवत के रूप में शक संवत को मान्यता दी गई है, लेकिन भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत के रूप में उपयोग किया जाता है। भारतीय संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी।
दुनिया भर में भले ही अंग्रेजी कैलेंडर को स्वीकार किया गया हो लेकिन भारत में प्राचीन संवत कैलेंडर की मान्यता पर ही काम किया जाता है। आज भी हमारे देश में व्रत, त्योहार, विवाह, मुंडन की तिथियां भारतीय पंचाग के अनुसार ही देखी जाती हैं। वहीं शक संवत को सरकारी रूप से अपनाने के पीछे वजह दी जाती है कि प्राचीन लेखों और शिलालेखों में इसका वर्णन देखने और पढ़ने को मिलता है। इसके साथ ही शक संवत, विक्रम संवत के बाद शुरू हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर से यहां 78 वर्ष पीछे है। यानी 2023 से अगर 78 को कम कर देते हैं तो होता हैं 1945 इस प्रकार अभी 1945 शक संवत चल रहा है।
आखिर चैत्र महीने में ही क्यों मनाया जाता हैं नववर्ष ?
चैत्र महीना प्रकृति की दृष्टि से भी बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसके साथ ही इस महीने में में सुबह के समय का मौसम और सूर्य की किरणें बहुत ही अच्छी मानी गई हैं। हिंदू धर्म में सूर्य और चंद्रमा को भी देवता की तरह पूजा जाता है। चैत्र महीने में ही चंद्रमा की कला का पहला दिन होता है, जिस के कारण ऋषि-मुनियों ने नव वर्ष के लिए चैत्र माह को नव वर्ष के लिए एकदम सटीक माना है। यही कारण है कि इसी दिन नववर्ष मनाया जाता है। विक्रम संवत को भारत के अलग-अलग राज्यों में गुड़ी पड़वा, चैत्र नवरात्र पोंगल आदि के नाम से मनाया जाता है।
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