छठ पर्व प्राकृतिक सौंदर्य, पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए मनाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। छठ पर्व या छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला लोक पर्व है। इस पूजा में नदी और तालाब का विशेष महत्त्व है यही कारण है कि छठ पूजा के लिए उनकी साफ सफाई की जाती है और उनको सजाया जाता है।
हमारे देश में छठ पूजा वैदिक काल से ही मनाए जाने वाला एक प्रसिद्ध पर्व है, जिसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली में बड़े ही श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
छठ पूजा वर्ष में दो बार पड़ती है, एक चैत्र मास और दूसरी कार्तिक मास में। कार्तिक छठ पूजा की तिथि कार्तिक शुक्ल षष्ठी से शुक्ल सप्तमी के बीच पड़ती है और दिवाली के 6 दिन बाद मनाई जाती है। षष्ठी तिथि के प्रमुख व्रत को मनाए जाने के कारण इस पर्व को छठ कहा जाता है। इस पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा और उन्हें अर्घ्य देने का विधान है।
छठ पूजा का पहला दिन जिसे ‘नहाए खाए’ कहते हैं वहां से शुरू होने वाले इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं और संतान की सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए इस दिन सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करती है। ऐसी मान्यता है कि छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं।
| पहला दिन (नहाए खाए) – 17 नवंबर
छठ पूजा का आरंभ ‘नहाए खाए’ से होता है, इस दिन घर की साफ-सफाई और पवित्रीकरण किया जाता है। उसके बाद भक्त अपने निकटतम नदी या तालाब में जाकर साफ पानी से स्नान करते हैं, नए वस्त्र पहनते हैं और पूजा करने के बाद चने की दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। यह भोजन कांसे या मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है। व्रत रखने वाले इस दिन केवल एक बार ही भोजन करते हैं और व्रत में तला हुआ खाना सख्त वर्जित है। व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के सभी सदस्य भोजन करते हैं।
| दूसरा दिन: खरना/लोहंडा – 18 नवंबर
छठ का दूसरा दिन, जिसे खरना या लोहंडा कहते हैं, छठ पूजा में खरना का विशेष महत्व है। खरना के दिन महिलाएं शाम को लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर भोग के रूप में चढ़ाती हैं। सभी भक्त सूर्य देव की पूजा करने के बाद इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। सभी परिवार के सदस्यों, मित्रों और रिश्तेदारों को खीर-रोटी प्रसाद के रूप में दी जाती है। खरना के दिन ठेकुआ नामक पकवान भी चढ़ाया जाता है। इस दिन से महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरु हो जाता है। पौराणिक मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही छठी मैया घर में प्रवेश करती है।
| तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य 19 नवंबर
छठ के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहते हैं, इस दिन डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है जिसके कारण इसे ‘संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। ‘संध्या अर्घ्य के दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और परिवार सहित पूरे दिन पूजा की तैयारी करती हैं। शाम के समय सभी परिवार के सदस्य नदी तट पर जाते है। वहां जाते समय परिवार की महिलायें नए वस्त्र धारण कर मैया के गीतों को गाती हैं। महिलाओं के साथ परिवार के पुरुष चलते हैं जो कि अपने साथ बेहेंगी यानी की एक बांस की टोकरी (जिसमें पूजा की सामग्री होती है) को साथ लिए चलते हैं। इसके बाद नदी के किनारे छठ माता का चौरा बनाकर दीप प्रज्वलित किया जाता है और डूबते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की जाती है।
| चौथा दिन: उषा अर्घ्य- 20 नवंबर
छठ पूजा का चौथा दिन, उषा अर्घ्य या पारण दिवस कहलाता है, इस दिन सूर्य उदय के समय सूरज को अर्घ्य देते है इसलिए इस दिन को ‘उषा अर्घ्य’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले व्रती जन घाट पर सभी परिजनो के साथ पहुँचते हैं और उगते सूर्यदेव की पूजा करते हैं। महिलाएं सुबह नदी या तालाब के पानी में उतरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं सात या ग्यारह बार परिक्रमा करती हैं और फिर एक-दूसरे को प्रसाद बाँट कर अपना व्रत खोलती हैं। 36 घंटे का व्रत सूर्य को अर्घ्य देने के बाद तोड़ा जाता है। इस व्रत की समाप्ति सुबह के अर्घ्य यानी दूसरे और अंतिम अर्घ्य को देने के बाद संपन्न होती है।
छठ पुजा सामग्री:
ठेकुया (यह छठ पुजा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पकवान है)
बर्तन
- बांस या पेटल का सूप
- दूध और जल के लिए गिलास
- चम्मच
- बड़ी टोकरी
- थाली
- दीपक
मीठाई
- खाजा
- गुजिया
- जुड़
- बड़ी टोकरी
- दूध से बनी मिठाइयाँ
- लड्डू
तरल पदार्थ
- दूध
- जल
- शहद
- गंगाजल
पूजा सामग्री
- चंदन
- चावल
- सिंदूर
- धूपबत्ति
- कुमकुम
- कपूर
- मिट्टी के दीए
- तेल और बाती
- नारियल
- कलावा
- सुपारी
- फूल और माला
अन्न:
- गेंहू
- चावल
- आटा
छठी मैया आपका सौभाग्य बनाएं रखें। • हम आपके व्रत की सफलता की कामना करते हैं।
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