क्या है संजीवनी बूटी का रहस्य?

संजीवनी बूटी का रहस्य प्रिय पाठकों रामायण की अनकही, अनसुनी बातों की श्रृंखला के इस लेख में हम जानेंगे संजीवनी बूटी का रहस्य क्या है? रामायण में वर्णित जादुई बूटी की पहचान क्या है? मेघनाथ ने आखिर कौन सी शक्ति का प्रयोग कर भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित किया था। संजीवनी बूटी की उत्पत्ति आखिर कैसे हुई थी ? संजीवनी बूटी सिर्फ द्रोण पर्वत पर ही कैसे मिल सकती थी ? लंका में युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाथ के द्वारा लक्ष्मण पर शक्ति बाढ़ चलाया गया तो, लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए और सिर्फ संजीवनी बूटी की मदद से ही ठीक हो सकते थे। धार्मिक ग्रंथो में संजीवनी बूटी की उत्पत्ति को अलग – अलग ढंग से उल्लेखित किया गया है। जिनको इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे।

क्या है संजीवनी बूटी ?

गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस में जिस संजीवनी बूटी का उल्लेख किया गया है। वो एक नहीं बल्कि चार बूटियां थी। लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर रावण के भाई विभीषण के कहने पर लंका के राज्य वैद सुशेन को बुलाया गया। राज्य वैद से इसका उपचार पूछा गया। फिर उन्होंने बताया कि हिमालय पर्वत के पास द्रोणागिरी पहाड़ से संजीवनी के पौधे लाने होंगे। जिससे लक्ष्मण जी को एक बार फिर से जीवन दान दिया जा सकता है। यह चार पौधे थे – जिनके नाम क्रमशः मृत संजीवनी, विशाल्यकरणी, संधानकरणी और सवण्यकरणी थे। यह बूटियां सिर्फ हिमालय के द्रोण पर्वत पर ही मिलती हैं। इसलिए हिमालय के द्रोण पर्वत का विशेष महत्व है।

संजीवनी बूटी की उत्पत्ति की रोचक धार्मिक कथा

धार्मिक कथाओं के अनुसार जब भगवान श्री राम वनवास के दौरान माता शबरी से मिले तो वो श्री राम के लिए कुछ बेर लेकर आईं थीं। लेकिन शबरी इन बेरों को भगवान श्री राम को नहीं खिला पा रही थी, क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि कहीं बेर खट्टे और खराब न हों। तभी माता शबरी ने प्रत्येक बेरों को एक-एक करके स्वाद चखा और सिर्फ मीठे बेर ही भगवान श्री राम को खिलाना शुरू किया। माता शबरी की सरलता और प्रेम भाव को देखते हुए रघुनाथ ने तो बेर को खा लिए लेकिन लक्ष्मण ने उन बेरों को जूठा समझ कर दूर फेंक दिया। धार्मिक गुरुओं की माने तो जो द्रोणागिरी पर्वत पर जाकर गिरे।

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तभी भगवान श्री राम ने लक्ष्मण से कहा प्रेम भाव से दिए गए बेर को तुमने तो फेंक दिए। लेकिन वही एक दिन तुम्हारे प्राणों की रक्षा करेंगे और वही बेर आगे चलकर संजीवनी बूटी बने और इसी संजीवनी बूटियों को लाने के लिए अंजनी पुत्र हनुमान द्रोण पर्वत पर पहुंचे। राज्य वेद सुशेन के द्वारा बताई गई संजीवनी बूटी को चमकीली और विचित्र सुगंध वाली बूटी बताया गया। लेकिन पहाड़ पर ऐसी कई बूटियां मौजूद थीं पहचान न पाने पर राम भक्त हनुमान पर्वत का एक हिस्सा तोड़कर वहां से लंका की तरफ चल दिए। इसके बाद राज्य वैद ने संजीवनी बूटी की पहचान करके लक्ष्मण जी का उपचार किया और वो फिर से जीवित हो गए। ऐसी मान्यता है कि जो पहाड़ पवन पुत्र लेकर लंका गए थे। वो आज भी वहीं पर हैं। तभी तो हनुमान चालीसा में कहा गया है। *** लाए संजीवनी लखन जियाये। श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।।

तो दोस्तों आज हमने रामायण के अनकही, अनसुनी बातों में संजीवनी का रहस्य जाना। ऐसे ही रामायण की रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे।

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