पुराणों की उत्पत्ति की कहानी

पुराणों की उत्पत्ति की कहानी

प्रिय धर्मानुरागियों, हिंदू धर्म और अध्यात्म के विषय वस्तु का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। यही नहीं, उनका हमारे समाज में बहुत पवित्र स्थान भी माना गया है। वेद-पुराण हमारे आध्यात्मिक जीवन के विकास का सार हैं, लेकिन स्नेहियों क्या आपको पता है, कि पुराणों की उत्पत्ति कब हुई थी? अगर नहीं, तो आइए आज हम आपका परिचय इसी से संबंधित तथ्यों से कराते हैं।

पुराणों की उत्पत्ति की कहानी

स्नेहियों, पुराण शब्द पुरा और अण शब्द के मेल से बना है, जिसमें पुरा का अर्थ है अतीत और अण का अर्थ है बताने वाला। इस प्रकार से पुराण का शाब्दिक अर्थ, पुराना आख्यान या पुरानी कथा कहा जा सकता है। मान्यता है, कि पुराण, वेदों के ही सरल रूप को दर्शाता है। मनुष्य के जीवन-चलन का जो सार वेदों में निहित है, उसी का सरलार्थ बताते हुए पुराणों की रचना की गई थी। हालांकि, पुराणों की रचना और उत्पत्ति को लेकर हमारे समाज में कई किंवदंतियाँ मौजूद हैं।

पुराणों के आविर्भाव के बारे में कई तथ्य, पुराणों और शास्त्रों में इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। पौराणिक मत अनुसार, लोक कल्याण के उद्देश्य से प्रजापति ब्रह्मा ने संसार की सृष्टि के समय सर्वप्रथम पुराण की रचना की थी, जिसे ब्रह्म पुराण के नाम से जाना गया। लेकिन कलयुग में मनुष्य की स्मरण शक्ति और विचार बुद्धि में दिखने वाले अभाव को विचार करते हुए, बाद में वेद व्यास ने इन पुराणों को अठारह भागों में बाँट दिया। महर्षि वेद व्यास ने इनका संकलन, देववाणी संस्कृत में किया है। कई मान्यताओं के अनुसार, वेद व्यास को परमावतार भगवान विष्णु का ही अवतार माना गया है, जिन्होंने मनुष्यों के जीवन का समस्त सार इन पुराणों में लिपिबद्ध किया था।

पुराणों को स्मृति विभाग में रखा जाता है, क्योंकि इनका संबंध स्मृति-चारण कर के लिखने से है। इन अठारह पुराणों के रचयिता महर्षि वेद व्यास, पराशर मुनि के पुत्र एवं कौरवों के पिता थे। परंतु कईं जगहों पर ये उल्लेख भी मिलता है, कि विष्णु पुराण की रचना व्यास के पिता, पराशर मुनि द्वारा ही की गई थी। प्राचीन भक्ति ग्रंथों में पुराणों को सबसे अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि इसमें विषयों की कोई सीमा नहीं, लोक कल्याण का हर विषय पूर्ण रूप से इसमें निहित है।

हिंदू सनातन धर्म में जिन अठारह पुराणों का अस्तित्व महत्वपूर्ण माना गया है, वह कुछ इस प्रकार हैं- ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु, शिव, भागवत, नारद, मार्कन्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य एवं गरुड़ पुराण। इन अठारह पुराणों में त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वर्णन किया गया है। कई लोग वायु पुराण को ही ब्राह्मण पुराण भी मानते हैं।

धर्मावलंबियों, पुराणों का पठन, श्रवण और चिंतन मनुष्य को उसके जीवन का सार समझाकर, जीवन-चलन के पथ पर अग्रसर करता है। तो आइए, हम भी पुराणों की दिव्यता की अनुभूति प्राप्त करें और अपना जीवन धन्य करें।

Source – Srimandir

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